Jcbs Jharia

‘Ground Is Sinking, Houses Are Cracking’:
People of Jharia Fear for Their Lives

“Spread the word: Jharia’s people are in danger. Share this message with government officials to help them.”

झरिया की सांसें दम तोड़ रही हैं

झरिया की धरती ने कोयले के रूप में देश को अंधेरे से उबारने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन इसके बदले में इस क्षेत्र को मिला है सिर्फ प्रदूषण, बीमारी, और मौत। कोयला खनन ने यहां की हवा को जहर बना दिया है। काला धुआं दिन-रात लोगों के फेफड़ों में समा रहा है।

बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं, कोई नहीं बचा है इस प्रदूषण की जद से। सांस लेना मुश्किल हो गया है। आंखें जलती हैं, खांसी लगातार रहती है। बीमारियां आम हो गई हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी अस्थमा और अन्य सांस संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं।

सरकार को इन समस्याओं से वाकिफ होना चाहिए, लेकिन लगता है कि इनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। कई दशकों से लोग प्रदूषण के खिलाफ लड़ रहे हैं, लेकिन नतीजा सिफर है। चुनावी वादे तो बहुत होते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है।

झरिया के लोग आज भी जीवन और मौत की जंग लड़ रहे हैं। उन्हें सांस लेने का हक है, स्वस्थ रहने का अधिकार है। लेकिन लगता है कि उनकी आवाज दबाई जा रही है। कब तक चलेगा यह जख्म? कब तक इंतजार करेंगे हम साफ हवा के लिए

झरिया की धरती की तरह यहां के लोग भी दम तोड़ रहे हैं। यह अंतहीन त्रासदी कब रुकेगी, यह सवाल अब भी कायम है।

झरिया कोलफील्ड बचाओ समिति(JCBS): एक उम्मीद की किरण

जेसीबीएस का मानना ​​है कि झरिया के लोग गरिमा और समृद्धि के जीवन के हकदार हैं। हम तब तक उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ते रहेंगे जब तक उनकी आवाज नहीं सुनी जाती और उनके जीवन बदल नहीं जाते।

झरिया कोलफील्ड बचाओ समिति द्वारा संबोधित प्रमुख मुद्दे:

  • जबरन भूमि अधिग्रहण: विस्थापित निवासियों के लिए उचित मुआवजे और पुनर्वास के लिए लड़ना।
  • वायु प्रदूषण: कड़े पर्यावरण नियमों और स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों की वकालत करना।
  • भूमि धंसाव: घरों और बुनियादी ढांचे को और नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए काम करना।
  • समुदाय सशक्तिकरण: स्थानीय निवासियों की क्षमता निर्माण करना ताकि वे अपने अधिकारों का दावा कर सकें।

Video footage courtesy of The Lallanto.

झरिया की त्रासदी: अनसुनी चीखें

24 मई, 2017 की तारीख झरिया के लिए एक काला दिन है। जमीन के अंदर दहकती आग की वजह से हुए भूस्खलन में एक पिता-पुत्र लापता हो गए। यह घटना मात्र एक दुर्घटना नहीं थी, बल्कि दशकों से झारखंड के धनबाद जिले में स्थित इस कोयला क्षेत्र के लोगों के संघर्ष की एक मार्मिक झलक है।

ज्वालामुखी के मुहाने पर जीवन:

झरिया का इतिहास कोयला खनन से गहराई से जुड़ा हुआ है, लेकिन अनियंत्रित खनन, सुरक्षा मानकों की अनदेखी और भूमिगत आग का प्रसार इस क्षेत्र के लिए अभिशाप बन गया है। जमीन के नीचे दबी आग का तापमान इतना अधिक होता है कि जमीन धंसने लगती है, घरों में दरारें पड़ जाती हैं और पूरा इलाका लगातार खतरे में रहता है।

24 मई 2017 की घटना का उल्लेख करते हुए यूट्यूब वीडियो  स्थानीय लोगों के गुस्से और हताशा को दर्शाता है। लापता हुए पिता-पुत्र के परिवार और उनके पड़ोसियों का दुःख साफ तौर पर देखा जा सकता है। वीडियो में गुस्साए लोग सड़कों पर उतरते हुए और सरकारी उदासीनता के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए भी दिखाई देते हैं।

सरकार की अनदेखी:

झरिया के लोगों को दशकों से इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है। सरकार द्वारा पुनर्वास और मुआवजे के वादे किए जाते रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनकी लगातार शिकायतों को दरकिनार कर दिया जाता है।

क्या हुआ उस पिता-पुत्र के साथ?

24 मई 2017 को हुए भूस्खलन में लापता हुए पिता-पुत्र का दुर्भाग्यपूर्ण अंत हुआ। उनका शव कभी नहीं मिला, जो इस त्रासदी का एक गहरा दाग बन गया।

जहर उगलता शहर:

झरिया की जमीन सिर्फ धंसने ही नहीं बल्कि जहर भी उगल रही है। कोयला खदानों से निकलने वाली धूल और हानिकारक गैसें लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रही हैं। सांस संबंधी बीमारियां, त्वचा संबंधी रोग और कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

एक ज्वलंत मुद्दा:

झरिया की त्रासदी सिर्फ एक क्षेत्र की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक ज्वलंत मुद्दा है। यह अनियंत्रित खनन, पर्यावरणीय नुकसान और सरकार की लापरवाही का परिणाम है।

आखिर कब तक?

झरिया की त्रासदी कई सवाल खड़े करती है। आखिर कब तक लोग इस दहशत में जीते रहेंगे? कब तक सरकार आंखें मूंदे रहेगी? झरिया के लोगों को उनकी जिंदगी जीने का हक है, जमीन के नीचे दबी आग के डर में नहीं। यह समय है कि इस ज्वलंत मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए और झरिया के लोगों के लिए ठोस समाधान निकाला जाए।

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झरिया अग्नि क्षेत्र: प्रवासन, जीवन की समस्याएँ और चुनौतियाँ

झारखंड के धनबाद जिले में स्थित झरिया कोयला क्षेत्र एक लंबे समय से कोयला खदानों में लगी आग के लिए जाना जाता है। झरिया के अग्नि क्षेत्र में हजारों लोग रहते हैं, जो जीवन को हर दिन खतरे में डालते हुए अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग न केवल गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, बल्कि भूमि धंसने और रोज़गार की कमी जैसी चुनौतियों का सामना भी कर रहे हैं।

प्रवास का कारण

झरिया क्षेत्र के लोगों को मजबूर होकर अपने घरों को छोड़कर अन्य जगहों पर बसने के लिए प्रवास करना पड़ रहा है। इसके कई मुख्य कारण हैं:

Video footage courtesy of The Quint

भूमि धंसने का खतरा: आग के कारण जमीन के अंदर बड़े पैमाने पर धंसने की घटनाएँ होती हैं, जिससे मकान और जान-माल का खतरा बना रहता है।

स्वास्थ्य समस्याएँ: कोयले के धुएं और जहरीली गैसों के कारण फेफड़ों की बीमारी, टीबी और त्वचा रोग जैसी समस्याएँ आम हैं।

रोज़गार की कमी: कोयले की खदानों के जलने और खनन कार्यों के ठप होने के कारण रोज़गार के अवसर भी समाप्त हो रहे हैं।

सरकार और जनता के लिए सुझाव

पुनर्वास योजना: सरकार को तत्काल प्रभाव से इन क्षेत्रों के लोगों के लिए सुरक्षित पुनर्वास योजना लागू करनी चाहिए।

स्वास्थ्य सेवाएँ: क्षेत्र में मोबाइल क्लीनिक और स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया जाना चाहिए।

रोज़गार के अवसर: खनन बंद होने के बाद वैकल्पिक रोजगार के लिए कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जाएँ।

सामाजिक जागरूकता: स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को आग और विस्थापन के खतरों से अवगत कराया जाना चाहिए।

झरिया के लोग आज भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रवासन उनकी मजबूरी बन गई है, लेकिन अगर सरकार और सामाजिक संगठनों ने मिलकर ठोस कदम उठाए, तो इनकी जिंदगी को बेहतर बनाया जा सकता है।

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